मेरी ख़ामोश मोहब्बत की ये क़ीमत दी है

मेरी ख़ामोश मोहब्बत की ये क़ीमत दी है
उस ने ठुकरा के मुझे दर्द की दौलत दी है

आप को भूल सकूँ दिल को कहीं बहलाऊँ
आप की याद ने कब मुझ को ये मोहलत दी है

पास बैठूँ तेरे और तुझ को ही देखे जाऊँ
मेरी आँखों को कहाँ इतनी इजाज़त दी है

दर्दमंदी से मोहब्बत से मिलूँ मैं सब से
मेरे अज्दाद ने विर्से में ये फ़ितरत दी है

काम औरों के मैं आती रहूँ मरते दम तक
मेरे ख़ालिक़ ने मुझे जितनी भी ताक़त दी है

कितनी दिलकश है हसीं है ये धनक-रंग फ़ज़ा
मौसम-ए-गुल को मुसव्विर ने क्या रंगत दी है

मेरी ज़ुल्फ़ों को सँवारे मेरा आँचल झूले
ऐ हवा किस ने तुझे आज ये जुरअत दी है

क्यों मेरे साथ ही रोया है मेरा आईना
नौहागर तू ने उसे कौन सी सूरत दी है

तेरी दुनिया में है मजरूह मेरी सादा-दिली
क्या इसी वास्ते ये सादा तबीअ'त दी है

ज़ख़्म-ए-दिल भर गए कुछ और इनायत कर दें
इतनी सी बात है साहब जो यूँ ज़हमत दी है

मुझ को इस दहर के दोज़ख़ में जलाया है सदा
कहने को क़दमों के नीचे मेरे जन्नत दी है

उस ने मुझ को फ़क़त ग़म ही नहीं बख़्शे हैं
मेरे लहजे को जुनूँ सोच को वहशत दी है

सब से मिलता है तो हँस हँस के सितम ढाता है
मेरे जज़्बों को कहाँ तू ने ये क़ुर्बत दी है

तुझ को अल्लाह बचाए सदा नज़र-ए-बद से
तुझ को 'शहनाज़' ख़ुदा ने हसीं सूरत दी है


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