फेंकें भी ये लिबास बदन का उतार के कब तक रहें गिरफ़्त में लैल-ओ-नहार के तस्ख़ीर-ए-काएनात-ओ-हवादिस के बावजूद हद पा सके न जब्र-ओ-ग़म-ओ-इख़्तियार के बिखरा हमेशा रेग की सूरत हवाओं में ठहरा कभी न मिस्ल किसी कोहसार के तन्हा खड़ा हुआ हूँ मैं दश्त-ए-ख़याल में ख़ामोश हो चुका भी समुंदर पुकार के 'तनवीर' आगही दें कहाँ तक हयात को बे-नूर हो चले हैं दिए ए'तिबार के