फ़िक्र है यारों को दरबार से कुछ काम मिले और जितना भी मिले उन को ही इनआ'म मिले मैं पड़ा रहता हूँ बस गोशा-ए-तन्हाई में चाहता हूँ कि हमेशा मुझे आराम मिले सुब्ह के वक़्त मिले होते तो इक बात भी थी मुझ से कुछ लोग मिले भी तो सर-ए-शाम मिले मुंतज़िर हूँ कि ख़रीदार कोई हाथ आए या'नी बाज़ार से अब कुछ तो मुझे दाम मिले ज़िंदगी तुझ से बहुत रूठ के मैं भागा था राह में फिर भी बहुत से ग़म-ओ-आलाम मिले