इक तिरे जाने से ये सारा मकाँ ख़ाली हुआ चाँद से तारों से अपना आसमाँ ख़ाली हुआ अब न दरिया में रवानी अब हवाओं में न जोश कश्तियों के साथ सारा बादबाँ ख़ाली हुआ फिर ख़िज़ाँ ने आ के अपने गुल खिलाए हर तरफ़ फिर चमन-बंदी से दस्त-ए-बाग़बाँ ख़ाली हुआ तर्क जब से कर दिया हम ने समुंदर का सफ़र कश्तियों से फिर वो बहर-ए-बेकराँ ख़ाली हुआ कब ज़बाँ अपने वज़ाइफ़ से रही है बे-नियाज़ कब दुआओं से ये दस्त-ए-ना-तवाँ ख़ाली हुआ