फ़िक्र पाबंदी-ए-हालात से आगे न बढ़ी ज़िंदगी क़ैद-ए-मक़ामात से आगे न बढ़ी हम समझते थे ग़म-ए-दिल का मुदावा होगी वो नज़र पुर्सिश-ए-हालात से आगे न बढ़ी उन की ख़ामोशी भी अफ़्साना-दर-अफ़्साना बनी हम ने जो बात कही बात से आगे न बढ़ी सरख़ुशी बन न सकी ज़हर-ए-अलम का तिरयाक ज़िंदगी तल्ख़ी-ए-हालात से आगे न बढ़ी इश्क़ हर मरहला-ए-ग़म की हदें तोड़ चुका अक़्ल अंदेशा-ए-हालात से आगे न बढ़ी ऐसी जन्नत की हवस तुझ को मुबारक ज़ाहिद जो तिरे हुस्न-ए-ख़यालात से आगे न बढ़ी निगह-ए-दोस्त में तौक़ीर नहीं उस की हमीद वो तमन्ना जो मुनाजात से आगे न बढ़ी