नियाज़-ओ-नाज़ का पैकर न अर्श पर ठहरा ज़मीं की गोद में उतरा तो बारवर ठहरा गदा-ए-कूचा-ए-उलफ़त ने आबरू पाई दयार-ए-शौक़ में सुल्ताँ से मो'तबर ठहरा जिसे नज़र ने सुनाया जिसे नज़र ने सुना वो गीत बरबत-ए-हस्ती का ज़ख़्मा-वर ठहरा वफ़ा की राह में निकले तो राहदाँ की तरह तिरे जमाल का परतव भी हम-सफ़र ठहरा चराग़ दूर से देखूँ तो रौशनी ले लूँ यही तरीक़-ए-गदाई मिरा हुनर ठहरा वो एक शख़्स कि गुमनाम था ख़ुदाई में तुम्हारे नाम के सदक़े में नामवर ठहरा वो दुर्र-ए-नाब कि सीपी में बंद था 'कौसर' किसी ने ढूँड निकाला तो ख़ूब-तर ठहरा