फ़िक्र-ओ-ख़याल में तुम्हें लाने से फ़ाएदा ख़ुद अपने घर में आग लगाने से फ़ाएदा बैठे बिठाए जी को जलाने से फ़ाएदा तामीर-ए-ज़िंदगी को मिटाने से फ़ाएदा फ़रियाद-ओ-आह नाला-ओ-शेवन फ़ुज़ूल हैं शब की ख़मोशियों को जगाने से फ़ाएदा पामाल हो चुके हैं ये अंदाज़-ए-आशिक़ी यूँ सर किसी के दर पे झुकाने से फ़ाएदा अच्छा नहीं है इश्क़ में ख़ुद्दारियों का ख़ून जो ख़ुद न आए उस को बुलाने से फ़ाएदा इश्क़ और ख़याल-ए-ता'न-ए-ज़माना ग़लत ग़लत आख़िर बताओ हम को ज़माने से फ़ाएदा अश्कों में बह चुकी है निगाह-ए-जमाल जो अब बे-नक़ाब सामने आने से फ़ाएदा गर जावेदाँ नहीं है मोहब्बत तो ऐ नदीम ये ख़्वाब-ए-ज़र-निगार दिखाने से फ़ाएदा बहर-ए-सुकूँ में डूब गई मौज-ए-इज़्तिराब साहिल पे ग़म का सोग मनाने से फ़ाएदा मैं बेवफ़ा हूँ तुम हो वफ़ादार हाँ दुरुस्त ऐ 'राज' और बात बढ़ाने से फ़ाएदा