फिर दिल ने कहा प्यार किया जाए किसी को जैसे भी हो हमवार किया जाए किसी को यूँ याद लगातार किया जाए किसी को आमादा-ए-इज़हार किया जाए किसी को कम-हौसला है कोई मोहब्बत में तो फिर क्यूँ बे-कार गिराँ-बार किया जाए किसी को माशूक़ की मर्ज़ी में ही आशिक़ की रज़ा है मशहूर ख़ता-वार किया जाए किसी को दिल उस का जिगर उस का है जाँ उस की हम उस के किस बात से इंकार किया जाए किसी को साक़ी की इनायत है तो मय-कश को है क्या उज़्र आसूदा ओ सरशार किया जाए किसी को इक कैफ़ था साग़र में तो हम बन गए कैफ़ी शर्मिंदा न बे-कार किया जाए किसी को है बे-कसी बे-गुनह तो फिर क्यूँ मेरे सरकार रुस्वा सर-ए-दरबार किया जाए किसी को समझाया बहुत हम ने पे 'रहबर' को ये ज़िद है शर्मिंदा-ए-किरदार किया जाए किसी को