फिर इक ख़ुशी से किया उस ने हम-कनार मुझे वो खींच ले गया दरिया-ए-ग़म के पार मुझे चराग़-ए-राह-ए-मोहब्बत हूँ ताक़ में रखना ग़ुबार-ए-क़र्या-ए-नफ़रत में मत उतार मुझे मैं उस की याद में रातों को सो नहीं सकती वो दूर रह के भी रखता है अश्क-बार मुझे कटी पतंग सी अटकी हूँ शाख़-ए-नाज़ुक पर हवा का हाथ भी करता है तार तार मुझे मिटा दे मुझ को या रख ले समेट कर दिल में तू हिज्र जैसी अज़िय्यत से मत गुज़ार मुझे तू जानता है कि मैं बे-घरी से डरती हूँ निकाल दिल से न ऐसे तू बार बार मुझे मैं इंतिज़ार के बर्ज़ख़ में जलती रहती हूँ हज़ार वसवसे रखते हैं बे-क़रार मुझे मैं चाहती हूँ उसे भूलना मगर 'फ़ौज़ी' क़सम ख़ुदा की नहीं ख़ुद पे इख़्तियार मुझे