फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए यकसर जहान ही को न जब तक डुबोइए दीवाना-वार नाचिये हँसिए गुलों के साथ काँटे अगर मिलें तो जिगर में चुभोइए आँसू जहाँ भी जिस की भी आँखों में देखिए मोती समझ के रिश्ता-ए-जाँ में पिरोइए हर सुब्ह इक जज़ीरा-ए-नौ की तलाश में साहिल से दूर शोरिश-ए-तूफ़ाँ के होइए