रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था वही हनूज़ है यक-दश्त फ़ासला कि जो था निशात-ए-गोश सही जल-तरंग की आवाज़ नफ़स नफ़स है इक आशोब-ए-कर्बला कि जो था गया भी क़ाफ़िला और तुझ को है वही अब तक ख़याल-ए-ज़ाद-ए-सफ़र फ़िक्र-ए-राहिला कि जो था वो आए जाता है कब से पर आ नहीं जाता वही सदा-ए-क़दम का है सिलसिला कि जो था