फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले जिस को उस के हाथ से साग़र मिले ये भी मिलना है कि बाद-अज़-सद-तलाश हद्द-ए-वहम-ओ-फ़हम से बाहर मिले कुछ न पूछो कैसी नफ़रत हम से है हम हैं जब तक वो हमें क्यूँकर मिले मेरी आँखें और उस की ख़ाक-ए-पा तेरे कूचे का अगर रहबर मिले वस्ल है सर-जोश-ए-सहबा-ए-फ़ना फिर अगर कोई मिले क्यूँकर मिले मिलने के पहले फ़ना होना ज़रूर फिर फ़ना जो हो गया क्यूँकर मिले 'आसी'-ए-गिर्यां मिला महबूब से गुल से शबनम जिस तरह रो कर मिले