फिर मिरे सर पे कड़ी धूप की बौछार गिरी मैं जहाँ जा के छुपा था वहीं दीवार गिरी लोग क़िस्तों में मुझे क़त्ल करेंगे शायद सब से पहले मिरी आवाज़ पे तलवार गिरी और कुछ देर मिरी आस न टूटी होती आख़िरी मौज थी जब हाथ से पतवार गिरी अगले वक़्तों में सुनेंगे दर-ओ-दीवार मुझे मेरी हर चीख़ मिरे अहद के उस पार गिरी ख़ुद को अब गर्द के तूफ़ाँ से बचाओ 'क़ैसर' तुम बहुत ख़ुश थे कि हम-साए की दीवार गिरी