फिर मिस्र के बाज़ार में नीलाम हुआ क्यूँ ऐ इश्क़ बता तेरा ये अंजाम हुआ क्यूँ हम बाइस-ए-राहत जिसे समझे थे वो लम्हा अब अपने लिए बाइ'स-ए-आलाम हुआ क्यूँ ऐ इश्क़ फ़लक पर तुझे लिखा जो ख़ुदा ने फिर तेरा मुक़द्दर भला इबहाम हुआ क्यूँ ऐ इश्क़ तिरा नाम है जब सच की अलामत ऐ इश्क़ तू रुस्वा यूँ सर-ए-आम हुआ क्यूँ जब एक ही सज्दे में तिरा भेद छुपा है फिर संग-ए-मलामत ही तिरा दाम हुआ क्यूँ ऐ आँख तू बे-ख़्वाब है ख़्वाबों की तलब में ये हिज्र ही आख़िर तिरा इनआ'म हुआ क्यूँ चेहरे पे तिरे किस लिए हैरत है अभी तक ये इतनी वज़ाहत पे भी इबहाम हुआ क्यूँ इस दिल को है महबूब वही दर्द का नग़्मा इस दिल में तअ'ज्जुब है ये कोहराम हुआ क्यूँ जो तेरी मोहब्बत को समझ ही नहीं पाया 'शाहीन' ये दिल उस के भला नाम हुआ क्यूँ