फिर मुझे हौसला-ए-अर्ज़-ओ-बयाँ मिल जाए कुछ दिनों के लिए मुझ को भी ज़बाँ मिल जाए सामना होगा तो कुछ कह न सकेंगे उस से जाने उस भीड़ में वो शोख़ कहाँ मिल जाए अजनबी गाँव में फिरता हूँ ये उम्मीद लिए छाँव दरकार है थोड़ी सी जहाँ मिल जाए क्या तमाशा है कि मैं क़स्द-ए-नशेमन ले कर घर से निकलूँ तो मुझे बर्क़-ए-तपाँ मिल जाए वहीं आ जाता है नाकामी-ए-क़िस्मत का ख़याल सूद की दिल में तमन्ना हो ज़ियाँ मिल जाए काश क़ासिद को मिरा हाल सुनाने के लिए चंद लम्हों के लिए मेरी ज़बाँ मिल जाए मेरे अशआ'र हूँ मक़्बूल-ए-ज़माना 'कौसर' मुझ को ऐसा कहीं अंदाज़-ए-बयाँ मिल जाए