फिर सबा गुज़री है दर-ए-सेहन-ए-चमन क्या कहना

फिर सबा गुज़री है दर-ए-सेहन-ए-चमन क्या कहना
अब तलक काँपते हैं सर्व-ओ-समन क्या कहना

ज़र्रा-ए-ख़ाक हूँ मैं सैल-ए-हवादिस के लिए
और इस ज़र्रे में दिल शाह-ए-ज़मन क्या कहना

जिस्म के हुक्म से आज़ाद हो जाँ चाहा था
रूह के हुक्म से आज़ाद है तन क्या कहना

शहर वीरान हुआ गोर-ए-ग़रीबाँ की तरह
उस पे मैं और मिरी रंगीनी-ए-फ़न क्या कहना

है गराँ तब-ए-शहीदाँ पे मज़ार-ओ-मर्क़द
जिस्म ख़ूँ-बस्ता है ख़ुद उन का कफ़न क्या कहना

लेक ये भी तो खुले कुछ तिरी निय्यत क्या है
नुदरत-ए-फ़िक्र और अंदाज़-ए-सुख़न क्या कहना

आख़िरश सहल हुआ नफ़-ओ-ज़रर का मतलब
अब हर इक चीज़ पे चस्पाँ है समन क्या कहना

ज़ीस्त इक पल है फ़क़त देखिए क्या कीजिए क्या
और इस पल में भी सद रंज-ओ-मेहन क्या कहना

इस क़दर ख़ौफ़ में हूँ मैं कि न नींद आवे है
किस क़दर ख़्वाब में हैं अहल-ए-वतन क्या कहना


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