लफ़्ज़ तरतीब से रखता हूँ मैं तमसील के साथ कौन करता है बयाँ फ़ल्सफ़ा तफ़्सील के साथ अश्क पैदा हुआ आँखों की ज़मीं से यक दम आइना टूट गया हिज्र की तकमील के साथ मेरी आवाज़ बहुत दूर तलक जाएगी आयत-ए-हिज्र सुनाऊँगा मैं तरतील के साथ मेरे अशआर में पैग़ाम था दुनिया के लिए मेरा दीवान भी रक्खा गया इंजील के साथ दिन निकलते ही उतरता है खुले पानी में जाने क्या रब्त है सूरज का मिरी झील के साथ मेरी जानिब भी तो कुछ तिश्ना-दहाँ आए गीं मेरा दरिया भी तो बहता है तिरे नील के साथ रौशनी ज़ख़्म छुपाए भी तो कैसे आख़िर मैं ने सूरज को शिकस्ता किया क़िंदील के साथ तू हवस-ज़ाद है ऐ दोस्त बदन का मारा तेरा कुछ ख़ास तअ'ल्लुक़ है अज़ाज़ील के साथ उन की परवाज़ पे अफ़्लाक 'फ़िदा' होता है अब तो शाहीन भी उड़ते हैं अबाबील के साथ