फिर सजे बज़्म-ए-तरब ज़ुल्फ़ खुले शाना चले फिर वही सिलसिला-ए-शोख़ी-ए-रिंदाना चले फिर ये यकजाई-ए-यारान-ए-चमन हो कि न हो देर तक आज ज़रा बज़्म में पैमाना चले फिर कोई क़ैस हो आवारा-ए-सहरा-ए-जुनूँ फिर किसी गेसु-ए-शब-रंग का अफ़्साना चले हम वो बद-मस्त-ए-जुनूँ हैं जो सर-ए-राह-ए-हयात कभी बा-होश कभी होश से बेगाना चले हम ने चाहा तो न था उन से उलझना लेकिन इस को क्या कहिए वो हर चाल हरीफ़ाना चले वक़्त बदला है तो फिर क्यूँ न ब-अंदाज़-ए-दिगर वही तहरीक-ए-शिकस्त-ए-ख़ुम-ओ-ख़ुम-ख़ाना चले