फिर से दरपेश सफ़र का क़िस्सा एक टूटे हुए घर का क़िस्सा हम ने तावीज़ की सूरत बाँधा दिल से निकले हुए डर का क़िस्सा गोशा-ए-चशम का जलते रहना ख़ुश्क होते हुए तर का क़िस्सा ख़ैर ने बाँझ ज़मीनों पे लिखा लहलहाते हुए शर का क़िस्सा फैलते फैलते कैसा फैला बे-घरी तेरी ख़बर का क़िस्सा बीज को ख़ाक-ए-नुमू तू बख़्शे खिलता जाएगा शजर का क़िस्सा