फिर से इक बार उसे ख़ुद पे सितम ढाने दूँ या'नी वो लौट के आए तो उसे आने दूँ नींद के ज़ख़्म के बारे में न सोचूँ इतना आँख अगर ख़्वाब से घबराए तो घबराने दूँ प्यास इतनी भी नहीं है कि मैं रोकूँ तुझ को दिल भरा भी नहीं इतना कि तुझे जाने दूँ एक बस इश्क़ के बदले में दिया हिज्र उस ने इतनी सी बात पे क्या ख़ाक उसे ता'ने दूँ तेरे माथे की लकीरों को मिटा दूँ यकसर ला जबीं पास तिरे रंज को मैं शाने दूँ लोग ये चाहते हैं बात न मानूँ दिल की रूह खाएगी बदन और बदन खाने दूँ तेरी वहशत के तईं आँख मुनासिब है मिरी आ तुझे एक नहीं बल्कि दो वीराने दूँ