फिर से तज्दीद-ए-आरज़ू कर लें आइए कुछ तो गुफ़्तुगू कर लें ज़िंदगी के हसीं दोराहे पर कुछ तमन्ना-ए-रंग-ओ-बू कर लें दोस्तों से निबाह गर चाहें दुश्मनों को भी हम सुबू कर लें जिस्म-ओ-जाँ रूह को सँवार तो दें आंसुओं से अगर वुज़ू कर लें लोग फ़र्द-ए-वफ़ा जफ़ा देखें आइना दिल का रू-ब-रू कर लें ऐब-जू नुक्ता-चीं अदू हासिद अपना दामन तो ख़ुद रफ़ू कर लें फिर वफ़ा हो न मोरिद-ए-इल्ज़ाम ज़ुल्म सहने की हम भी ख़ू कर लें ख़ुद-नुमाई फ़रेब है 'सादिक़' ख़ुद-शनासी की जुस्तुजू कर लें