क्यों ज़माने का हम गिला न करें कुछ भी हो कोई इल्तिजा न करें हुक्म-ए-हाकिम अजीब है यारो सब सितम सह लें और गिला न करें सब्र-ओ-तस्लीम तो सरिश्त में है ग़ैर मुमकिन है हम वफ़ा न करें किस तरह उस को भूल सकते हैं अपने मौला से क्या दुआ न करें लुत्फ़-ओ-एहसाँ की हद ओ बस्त कहाँ अर्ज़ क्यों हर्फ़-ए-मुद्दआ' न करें कासा-ए-दिल ब-दस्त पुर-उम्मीद मुंक़ता' रिश्ता-ए-वफ़ा न करें ख़ून-ए-नाहक़ तो राएगाँ न गया क्यों भला ज़िक्र-ए-कर्बला न करें जुर्म-ए-ना-कर्दा की सज़ा 'सादिक़' पाएँ मासूम ये ख़ता न करें