फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर ये बला घर से निकाली हुई आई क्यूँकर कट सके सख़्ती-ए-अय्याम-ए-जुदाई क्यूँकर ग़ैर को आए इलाही मिरी आई क्यूँकर तू ने की ग़ैर से कल मेरी बुराई क्यूँकर गर न थी दिल में तो लब पर तिरे आई क्यूँकर न कहूँगा न कहूँगा न कहूँगा हरगिज़ जा के उस बज़्म में शामत मिरी आई क्यूँकर खुल गई बात जब उन की तो वो पूछते हैं मुँह से निकली हुई होती है पराई क्यूँकर दाद-ख़्वाहों से वो कहते हैं कि हम भी तो सुनें दोगे तुम हश्र में सब मिल के दुहाई क्यूँकर तुम दिल-आज़ार ओ सितमगर नहीं मैं ने माना मान जाएगी इसे सारी ख़ुदाई क्यूँकर ना-गहाँ शिकवा-ए-बेदाद तो कर बैठे हम अब ये है फ़िक्र करें उन से सफ़ाई क्यूँकर आप में भी तो रही आतिश-ए-तर की तेज़ी आग पानी में ये साक़ी ने लगाई क्यूँकर अल्लाह अल्लाह बुतों को है ये दस्त-ए-क़ुदरत उन की मुट्ठी में रही सारी ख़ुदाई क्यूँकर वो यहाँ आएँ वहाँ ग़ैर का घर हो बर्बाद इस तरह से हो सफ़ाई में सफ़ाई क्यूँकर मजलिस-ए-वाज़ को देखा तो कहा रिंदों ने होगी इस भीड़ की जन्नत में समाई क्यूँकर आईना देख कर वो कहने लगे आप ही आप ऐसे अच्छों की करे कोई बुराई क्यूँकर कसरत-ए-रंज-ओ-अलम सुन के ये इल्ज़ाम मिला इतने से दिल में है इतनों की समाई क्यूँकर उस ने सदक़े में किए आज हज़ारों आज़ाद देखिए होती है आशिक़ की रिहाई क्यूँकर 'दाग़' को मेहर कहा अश्क को दरिया हम ने और फिर करते हैं छोटों की बड़ाई क्यूँकर 'दाग़' कल तो दुआ आप की मक़्बूल न थी आज मुँह-माँगी मुराद आप ने पाई क्यूँकर