फिर वही बे-दिली फिर वही माज़रत बस बहुत हो चुका ज़िंदगी माज़रत ख़ुद-कलामी से भी रूठ जाती है तू अब न बोलूँगा ऐ ख़ामुशी माज़रत धूप ढल भी चुकी साए उठ भी चुके अब मिरे यार किस बात की माज़रत दाद बे-दाद में दिल नहीं लग रहा दोस्तो शुक्रिया शाएरी माज़रत बे-ख़ुदी में ख़ुदाई का दावा किया ऐ ख़ुदा दर-गुज़र ऐ ख़ुदी माज़रत तुझ से गुज़री हुई ज़िंदगी माँग ली रब्ब-ए-इमरोज़-ओ-फ़र्दा-ओ-दी माज़रत इक नज़र उस ने देखा है 'आसिम' चलो दूर ही से सही हो चुकी माज़रत