जो तुम से मिला होगा जो तुम ने दिया होगा वो ग़म भी मसर्रत के साँचे में ढला होगा ऐ हम-सफ़रो उस का क्या हाल हुआ होगा मंज़िल के क़रीब आ कर जो शख़्स लुटा होगा हम राह-ए-मोहब्बत से इस तरह से गुज़़रेंगे जो नक़्श-ए-क़दम होगा तस्वीर-ए-वफ़ा होगा हम तो तुम्हें हस्ती का मुख़्तार समझते हैं जो तुम ने कहा होगा अच्छा ही कहा होगा अब यूँ ही तड़पने दो मुझ को मिरे ग़मख़्वारो तस्कीन अगर दोगे दर्द और सिवा होगा मौजों की रवानी से महसूस ये होता है दीवाना कोई 'ग़ाज़ी' तूफ़ाँ से लड़ा होगा