फिर वही रात फिर वही आवाज़ मेरे दिल की थकी हुई आवाज़ कहीं बाग़-ए-नख़ुस्त से आई किसी कोयल की दुख-भरी आवाज़ अभी छाया नहीं है सन्नाटा आ रही है कोई कोई आवाज़ फड़फड़ाहट किसी परिंदे की किसी कोंपल की फूटती आवाज़ अभी महफ़ूज़ है तिरा चेहरा अभी भूली नहीं तिरी आवाज़ मेरे बिस्तर पे आ के लेट गई रौशनी की लकीर सी आवाज़ मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई एक सुब्ह-ए-जमाल की आवाज़ दिन से फ़ुर्सत कभी मिले तो सुनो शाम का साज़ रात की आवाज़ गूँजता है अभी तराना-ए-शौक़ वही आहंग है वही आवाज़ टेढ़े-मेढ़े मुड़े-तुड़े मुखड़े टूटी-फूटी कटी-फटी आवाज़ बड़े दुख झील कर कमाई है जो भी है ये बुरी-भली आवाज़