मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं हम जान दे के दिल को सँभाले हुए तो हैं बे-ज़ार हो न जाए कहीं ज़िंदगी से दिल तासीर से ख़फ़ा मिरे नाले हुए तो हैं रिसते हैं अब के साल कि बहते हैं देखिए फिर फ़स्ल-ए-गुल में ज़ख़्म-ए-दिल आले हुए तो हैं अरमाँ जो यूँ नहीं तो निकलते हैं किस तरह यानी हमारे दिल से निकाले हुए तो हैं हाँ दर्द-ए-इश्क़ उन पे करम की नज़र रहे सब्र ओ क़रार तेरे हवाले हुए तो हैं ये सोहबतें भी देखिए लाती हैं रंग क्या मेहमान ख़ार पाँव के छाले हुए तो हैं क्या जानिए कि हश्र हो क्या सुब्ह-ए-हश्र का बेदार तेरे देखने वाले हुए तो हैं 'फ़ानी' तिरे अमल हमा-तन जब्र ही सही साँचे में इख़्तियार के ढाले हुए तो हैं