फूल खिला दे शाख़ों पर पेड़ों को फल दे मालिक धरती जितनी प्यासी है उतना तो जल दे मालिक कोहरा कोहरा सर्दी है काँप रहा है पूरा गाँव दिन को तपता सूरज दे रात को कम्बल दे मालिक बैलों को इक गठरी घास इंसानों को दो रोटी खेतों को भर गेहूँ से काँधों को हल दे मालिक वक़्त बड़ा दुख-दाइक है पापी है संसार बहुत निर्धन को धनवान बना दुर्बल को बल दे मालिक हाथ सभी के काले हैं नज़रें सब की पीली हैं सीना ढाँप दुपट्टे से सर को आँचल दे मालिक कल को आज से बाँधे रख आज को कल से जोड़े रख जब तक खेल-तमाशा है पीर को मंगल दे मालिक