फूल पर ओस है आरिज़ पे नमी हो जैसे उस के चेहरे पे मिरी आँख धरी हो जैसे उस की पलकों पे रखूँ होंट तो यूँ जलते हैं उस के सीने में कहीं आग लगी हो जैसे झील के होंट पे सूरज की किरन लहराई मेरे महबूब के होंटों पे हँसी हो जैसे अब भी रह रह के मिरे दिल में सिसकता है कोई उस में मूरत कोई बचपन की छुपी हो जैसे ख़त में इस तरह वो तादीब मुझे करती है उम्र में मुझ से कई साल बड़ी हो जैसे मेरे बचपन की पुजारन ने मुझे यूँ देखा अपने भगवान के चरनों में दुखी हो जैसे तुझ से मिल कर भी उदासी नहीं जाती दिल की तू नहीं और कोई मेरी कमी हो जैसे