फूलों के देस चाँद सितारों के शहर में बर्बाद हो रहा हूँ निगारों के शहर में मौज-ए-समन में ज़हर है बाद-ए-सबा में आग दम घुट रहा है यासमीं-ज़ारों के शहर में आँसू हूँ हँस रहा हूँ शगूफ़ों के दरमियाँ शबनम हूँ जल रहा हूँ शरारों के शहर में वो मैं हूँ जिस ने शोला-ए-साग़र उछाल कर की है ख़िज़ाँ की बात बहारों के शहर में ये क़िल'अ और ये मस्जिद-ए-शाह-ए-जहाँ का औज किस दर्जा सर-निगूँ हूँ मनारों के शहर में ऐ मेरी फ़ितरत-ए-तरब-आगीं ख़ता-मुआफ़ शर्मिंदा हूँ मैं ज़ुल्म के मारों के शहर में बस मैं बनूँगा ख़ुसरव-ए-महताब ऐ 'सलाम' सोचा है ये धुएँ के ग़ुबारों के शहर में