फूलों से छुप सका है कहीं गुलिस्ताँ का हाल हम जानते हैं आज है जो इस जहाँ का हाल नज़रों में दार-ओ-गीर का आलम है आज भी किस दिल से हम बताएँ तुम्हें कारवाँ का हाल बिजली की ज़द में आ गया फ़स्ल-ए-बहार में अल-मुख़्तसर यही है मेरे आशियाँ का हाल नक़्शा किसी की बज़्म का आँखों में फिर गया वाइ'ज़ ने आज छेड़ा जो बाग़-ए-जिनाँ का हाल है फ़िक्र गुल की इस को न कलियों का कुछ ख़याल हम क्या बताएँ आज जो है बाग़बाँ का हाल बे-बाल-ओ-पर पड़ा हूँ क़फ़स में चमन से दूर कुछ तो बताओ मुझ को मिरे गुलिस्ताँ का हाल मेरे ही गुलिस्ताँ की नहीं बात ऐ 'उमीद' है एक ही सा आज तो सारे जहाँ का हाल