फुसून-ए-शब की सियाही से हार जाते हैं हम अहल-ए-गिर्या ख़मोशी से हार जाते हैं सजा के चारों तरफ़ दोस्तो वो बज़्म-ए-नशात सुना है दिल की उदासी से हार जाते हैं दिलों में दर्द लिए अहल-ए-हिज्र नौहागर रह-ए-वफ़ा में असीरी से हार जाते हैं क़बीला यूँ तो लब-ए-जू बसा लिया लेकिन हम अब भी तिश्ना-दहानी से हार जाते हैं अजीब होते हैं ऐ शख़्स दुख के बाशिंदे ज़रा से आँख के पानी से हार जाते हैं