इश्क़ को छोड़ के हर कार पे रोए अक्सर हम मोहब्बत में तिरी हार पे रोए अक्सर मुद्दतों बैठ के ये अहल-ए-जुनूँ वहशत में तेरी आँखों की ज़बूँ-ज़ार पे रोए अक्सर जिन को सुन कर कभी मसहूर हुए जाते थे दोस्त उस मोनिस-ए-बीमार पे रोए अक्सर याद कर कर के फ़क़ीरान-ए-वफ़ा वा'दा-शिकन इश्क़ और इश्क़ की मिस्मार पे रोए अक्सर