ग़फ़लत में फ़र्क़ अपनी तुझ बिन कभू न आया हम आप के न आए जब तक कि तू न आया साक़ी ने जाम-ए-मय तो शब पै-ब-पै दिया पर निय्यत भरी न अपनी जब तक सुबू न आया कोताह है निहायत दस्त-ए-दुआ हमारा दामन असर का जा कर इक बार छू न आया आशिक़ को तेरे कल से थी जाँ-कनी की हालत सब देखने को आए अल्लाह तू न आया फूँका भी तूर-ओ-वादी बाज़ ऐ 'ख़लीक़' लेकिन अपनी शरारतों से वो शो'ला-ख़ू न आया