ज़ाहिद इस राह न आ मस्त हैं मय-ख़्वार कई अभी याँ छीन लिए जुब्बा-ओ-दस्तार कई संग-दिल कूँ न किसी की हुई अफ़्सोस ख़बर मर गए सर कूँ पटक कर पस-ए-दीवार कई ना-तवाँ मुझ सा भला कौन है इंसाफ़ तो कर चश्म-ए-फ़त्ताँ के तिरे गरचे हैं बीमार कई दिल की बेताबी से और चश्म की बे-ख़्वाबी से नज़र आने लगे अब इश्क़ के आसार कई जूँ ही वो होश-रुबा आ के नुमूदार हुआ नक़्श-ए-दीवार हुए तालिब-ए-दीदार कई अब्रू-ओ-चश्म-ओ-निगाह-ओ-मिज़ा हर इक ख़ूँ-ख़्वार एक दिल है मिरा तिस पर हैं दिल-आज़ार कई ऐ मसीहा-ए-ज़माँ देख टुक आ कर अहवाल कि तिरी चश्म के याँ मरते हैं बीमार कई खींच मत ज़ोर से शाने को तू ऐ मश्शाता दिल हैं उस ज़ुल्फ़ के बालों में गिरफ़्तार कई कफ़-ए-पा हैं तिरे सहरा की निशानी 'बेदार' मर गया तो भी फफूलों में रहे ख़ार कई