ग़फ़लतों का समर उठाता हूँ रोज़ ताज़ा ख़बर उठाता हूँ बात बढ़ती है तूल देने से सो इसे मुख़्तसर उठाता हूँ हो के बाशिंदा इक सितारे का उँगलियाँ चाँद पर उठाता हूँ चूमते हैं जिसे उठा कर लोग मैं उसे चूम कर उठाता हूँ अब कहाँ आसमान छूने को ज़हमत-ए-बाल-ओ-पर उठाता हूँ सू-ए-मंज़िल में हर क़दम अपना इक फ़लक छोड़ कर उठाता हूँ वार करती है जब पलट कर मौज एहतियातन भँवर उठाता हूँ अपनी मफ़्तूहा सर-ज़मीनों पर पाँव रखता हूँ सर उठाता हूँ