गह मश्क़-ए-सितम गाह-ए-करम याद करेंगे जब तक भी जिएँगे तुम्हें हम याद करेंगे जब ज़िक्र छिड़ेगा कहीं अरबाब-ए-वफ़ा का अपने दिल-ए-मरहूम को हम याद करेंगे दिल अपना है दिल पर तो नहीं ज़ोर किसी का का'बे में भी हम तुझ को सनम याद करेंगे जो सज्दा-गह-ए-इश्क़ की रिफ़अत से हैं वाक़िफ़ वो लोग मिरा नक़्श-ए-क़दम याद करेंगे तौक़ीर बढ़ाई है मिरे सज्दों ने उन की इक उम्र मुझे दैर-ओ-हरम याद करेंगे जब बात छिड़ेगी कहीं अरबाब-ए-नज़र की 'साक़ी' को बहुत अहल-ए-क़लम याद करेंगे