गहरी नीली शाम का मंज़र लिखना है तेरी ही ज़ुल्फ़ों का दफ़्तर लिखना है कई दिनों से बात नहीं की अपनों से आज ज़रूरी ख़त अपने घर लिखना है शिद्दत पर है हरे-भरे पत्तों की प्यास सहरा सहरा ख़ून समुंदर लिखना है पत्थर पर हम नाम किसी का लिक्खेंगे आईने पर आज़र आज़र लिखना है चेहरा रौशन खुले हुए सहरा की धूप गहरी आँखें गहरा सागर लिखना है इस से आगे कुछ लिखने से क़ासिर हूँ इस के आगे तुझ को बढ़ कर लिखना है