ग़ैर के दिल पे तू ऐ यार ये क्या बाँधे है है वो इक बाद-फ़रोश और हवा बाँधे है बुल-हवस जामा-ए-उर्यानी-ए-उश्शाक़ को देख तू गरेबान से क्यूँ अपना गला बाँधे है यूँ शरर छिड़ती हैं जैसे कि हवाई है छुटी इक समाँ आह मिरी ता-ब-समा बाँधे है दिल-ए-सर-गश्ता भी तो एक बला में है फँसा कभी खोली है कभू ज़ुल्फ़-ए-दोता बाँधे है ये तो तुझ से न हुआ आवे शब-ए-तार में यार तार शिकवों ही का तू सुब्ह-ओ-मसा बाँधे है देख कर तोड़ा गले का कोई दिल देता है मुंडचरा-पन से तू क्यूँ अपना गला बाँधे है बेवफ़ा माँदा की रक्खी तो न तुझ पास रहूँ क्या करूँ पाँव मिरा दस्त-ए-वफ़ा बाँधे है नाफ़-ए-आहू में न किस तरह से जा कर वो छुपे मुश्क की मुश्कीं तिरी ज़ुल्फ़-ए-रसा बाँधे है एक झगड़ालू की दुख़्तर पे हुआ है आशिक़ दिल मिरा जान के झगड़े की बिना बाँधे है जब जफ़ा से तिरी होता हूँ ख़फ़ा ग़ुस्से से टुकटुकी मेरी तरफ़ मेहर-ए-वफ़ा बाँधे है जब कहा मैं ने कि जूड़े को मिरी जान तू बाँध बंद महरम के मैं बाँधूंगा तू क्या बाँधे है खोल कर बालों को आशुफ़्ता-ओ-बरहम हो कर तेरे कहने से कहा मेरी बला बाँधे है सहल ये तौर है 'एहसाँ' ग़ज़ल इक और भी लिख है खुला सब पे तू मज़मून बँधा बाँधे है