ग़ैर मुमकिन है कि ग़फ़्लत कोई सय्याद करे कौन होगा जो मुझे क़ैद से आज़ाद करे ख़ौफ़ ऐसा कि कहीं फिर न भुला दे मुझ को सोचती हूँ कि कहीं फिर न मुझे याद करे ज़ब्त इतना कि मैं दुल्हन भी सजा सकती हूँ शर्त इतनी कि मोहब्बत से वो इरशाद करे वो हर इक बात से चाहे तो मुकर सकता है क्या ज़रूरी है कि हर बात पे ही साद करे कौन कहता है मिरा नाम लिया है उस ने उस से कहना कि ज़रा फिर से वो इरशाद करे हम तिरे सामने रोने भी नहीं आएँगे तू सितम रोज़ नया शौक़ से ईजाद करे 'नूर' रखती है पहाड़ों सा कलेजा लेकिन क्या करे याद तुझे जब दिल-ए-बर्बाद करे