ग़ज़ब की धूम शबिस्तान-ए-रोज़गार में है कशिश बला की तमाशा-ए-नागवार में है दिखाई आज ही आँखों ने सूरत-ए-फ़र्दा ख़िज़ाँ की सैर भी हंगामा-ए-बहार में है ग़ुबार बन के लिपटती है दामन-ए-दिल से मिटे पे भी वही दिल-बस्तगी बहार में है दुआ-ए-शौक़ कुजा एक हाथ है दिल पर और एक हाथ गरेबान-ए-तार-ए-तार में है हनूज़ गोश-बर-आवाज़ ग़ैर है कोई उमीद-वार-ए-अज़ल अब तक इंतिज़ार में है क़सम है वादा-ए-सब्र-आज़मा-ए-जानाँ की कि लज़्ज़त-ए-अबदी है तो इंतिज़ार में है दवा में और दुआ में तो अब असर मा'लूम बस इक उमीद-ए-असर ज़ब्त-ए-नागवार में है चले-चलो दिल-ए-दीवाना के इशारे पर मुहाल-ओ-मुम्किन तो सब उस के इख़्तियार में है