हनूज़ दर्द-ए-जुदाई-ए-यार बाक़ी है खटक रहा था जो दिल में वो ख़ार बाक़ी है न क़ैस है न वो महमिल-सवार बाक़ी है बस इक ग़ुबार फ़क़त यादगार बाक़ी है शराब-ए-ऐश किसी शब हुई थी मुझ को नसीब उसी शराब का अब तक ख़ुमार बाक़ी है कभी तो शाम-ए-मुसीबत की सुब्ह आएगी अगर ये गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार बाक़ी है निगाह-ए-लुत्फ़ से साक़ी हमीं रहें महरूम उधर भी देख इक उम्मीद-वार बाक़ी है बहार आएगी फिर 'यास' ना-उमीद न हो अभी तो गुलशन-ए-ना-पाएदार बाक़ी है