ग़ज़ल में दश्त की ख़ाली बड़ाई होती है समुंदरों की अभी तक बुराई होती है तुम्हारे शहर में बस इस लिए नहीं आता तुम्हारे शहर में तो ख़ुद-नुमाई होती है बहुत उठाती है नुक़सान रौशनी यारों अगर दियों की हवा से लड़ाई होती है जहाँ पे बैठते उठते हैं चार छे शाइ'र वहाँ पे ख़ूब लगाई बुझाई होती है ये कार-ज़ार-ए-मोहब्बत है और यहाँ 'अनवर' सुनी-सुनाई नहीं आज़माई होती है