ग़ज़ल में हुस्न का उस के बयान रखना है कमाल आँखों में गोया ज़बान रखना है जहाज़-राँ हुनर ओ हौसला न ले जा साथ हुआ के रुख़ पे अगर बादबान रखना है भरा तो है मिरा तरकश मगर ये दिल है गुदाज़ सो उम्र भर मुझे ख़ाली कमान रखना है दिए बुझाती रही दिल बुझा सके तो बुझाए हवा के सामने ये इम्तिहान रखना है बहुत हँसे मिरे इस फ़ैसले पे साया-नशीं कि सर पे धूप को अब साएबान रखना है हो इंतिज़ार-ए-बहाराँ जहाँ न रंज-ए-ख़िज़ाँ 'कमाल' ऐसा बयाबाँ मकान रखना है