ग़म-ए-जाँ गुम ग़म-ए-दुनिया में तो होना मुश्किल है समुंदर को समुंदर में समोना मुश्किल नींद जिस ने बहुत आँखों से उड़ा रक्खी थी ये हुआ क्या कि हुआ उस को भी सोना मुश्किल हर सिफ़त अपनी कहाँ देता है गुल ख़ुशबू को ख़्वाब दिल के मिरी आवाज़ में होना मुश्किल यूँ ज़मीं ज़ाइक़ा-ए-ख़ूँ से हुई है मानूस इस में अब फ़स्ल-ए-मोहब्बत की है बोना मुश्किल कल हमें मिलने हैं जो ग़म वो अभी मिल जाएँ आँख पथराई तो हो जाएगा रोना मुश्किल वक़्त को खेलने इंसान से दो जी भर के फिर 'कमाल' उस को है मिलना ये खिलौना मुश्किल