ग़लत है सब तो ये रुस्वाई कैसी जो पर्बत बन गई वो राई कैसी कभी ख़ाली समुंदर कर के देखें नज़र आती है कि गहराई कैसी लगा है चाँद को ये दाग़ कैसा छुपी है दाग़ में ये खाई कैसी मिरी ये बात सुन लें दूरबीनें नहीं हों आँख तो बीनाई कैसी उसी की ज़ात के हैं सब करिश्मे बुज़ुर्गों फिर ये हाथा-पाई कैसी अगर बैठा नहीं हो साँप उस पर कोई दौलत नहीं है भाई कैसी मिरा तो नाम ही ग़ाएब है अब के ये उस ने दास्ताँ दोहराई कैसी