गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें जो बात मानो तो मिन्नत हज़ार बार करें ये हाथ कैसे हैं बे-कार कुछ तो कार करें बहार आई गरेबान तार तार करें कहाँ से लाएँ अब उस को जो हम-कनार करें तसल्ली क्या तिरी ओ जान-ए-बे-क़रार करें वो रब्त तुम से बढ़ाएँ वो तुम को यार करें हज़ार तरह के जो जब्र इख़्तियार करें गिराए सैल-ए-अनासिर की चार दीवारी ख़राब ख़ाना-ए-तन चश्म-ए-अश्क-बार करें तुम्हारे दर से न मायूस जाएँ हाजत-मंद क़ुबूल होवे जो तौबा गुनाहगार करें कफ़न भी हो गया मैला धरे धरे ऐ मौत तमाम उम्र हुई कब तक इंतिज़ार करें ब-रंग-ए-ग़ुंचा ज़बाँ है दहाँ में ज़ेर-ए-ज़बाँ तुम्हारे क़ौल का क्या ख़ाक ए'तिबार करें गदा तिरे दर-ए-दौलत के हैं ये मुस्तग़नी जो सल्तनत भी मिले तो न इख़्तियार करें ग़ुरूर-ए-हुस्न से हरगिज़ सुनेगा एक न गुल चमन में नाले अगर बुलबुलें हज़ार करें सुनाए रखता हूँ सब को मिरी वसिय्यत है कि ता इसी पे अमल मेरे ग़म-गुसार करें चराग़-ए-ज़ीस्त जब उस नंग-ए-दूदमाँ का हो गुल अज़ीज़ शम्अ न रौशन सर-ए-मज़ार करें तिरे सिवा है करीम और रहीम किस की ज़ात नजात किस से तलब हम गुनाहगार करें बजाए-सुर्मा लगाएँ ग़ुबार-ए-कूचा-ए-यार यही इलाज तिरा चश्म-ए-अश्क-बार करें सितम-शिआर जफ़ा-पेशा बे-मुरव्वत है सराहिये जिगर उन के जो तुझ को प्यार करें बढ़ा के लिक्खें न शाएर हदीस-ए-ज़ुल्फ़-ए-रसा हुआ है तूल मुनासिब है इख़्तिसार करें दर-ए-करीम से आती है मुत्तसिल ये सदा वो क्यूँ न पाए जिसे हम उमीद-वार करें ये बुत उठाएँ जो क़ुरआँ भी काबे में ऐ 'रिन्द' ख़ुदा से हम तो हों मुंकिर जो ए'तिबार करें