गले मिलते हुए वापस पलट जाएगा साहिब ग़ुबारा धूप में जाते ही फट जाएगा साहिब हमारे दिल पे जितने लोग क़ाबिज़ हो रहे हैं ये पत्थर तो कई टुकड़ों में बट जाएगा साहिब मुसीबत में सहारे की तलब किस को नहीं है अंधेरा रौशनी से ख़ुद लिपट जाएगा साहिब दिलों में रहने वाले कल लबों पर आ रहेंगे बदन का ख़ून आँखों में सिमट जाएगा साहिब हमारे शर से कोई चीज़ कैसे बच सकेगी मुझे लगता है ये जंगल भी कट जाएगा साहिब ख़ुदा और आदमी में पादरी की जा नहीं है उफ़ुक़ से एक दिन ये अब्र छट जाएगा साहिब मोहब्बत में अनाड़ी-पन बहुत नुक़्सान-देह है ये झूला पहले चक्कर में उलट जाएगा साहिब अगर कुछ पूछना है अपने सहराओं से पूछें समुंदर आप के रस्ते से हट जाएगा साहिब