हाथ रखता नहीं ज़िंदान भी आ जाए अगर चोर के सामने क़ुरआन भी आ जाए अगर तज्रबा हो चुका इंसाँ से निमटने का मुझे अब तो दिल में कोई हैवान भी आ जाए अगर ख़ुशबुएँ क़ैद नहीं होंगी किसी बर्तन में पेड़ की शाख़ पे गुल-दान भी आ जाए अगर कश्तियों वालों को तैराकी का फ़न आता है रास्ते में कहीं तूफ़ान भी आ जाए अगर पेड़ को फ़र्क़ नहीं पड़ता किसी पत्थर से क्या करेगा तिरा दीवान भी आ जाए अगर तेरी यादें भी तिरे साथ मिरे दिल में रुकें एक ही डब्बे में सामान भी आ जाए अगर