गली का पत्थर था मुझ में आया बिगाड़ ऐसा मैं ठोकरें खा के हो गया हूँ पहाड़ ऐसा ख़ुदा ख़बर दिल में कोई आसेब है कि इस में कोई न आया गया पड़ा है उजाड़ ऐसा न सर उठा पाए कोई भौंचाल मुझ में ऐ वक़्त मैं नर्म मिट्टी हूँ सो मुझे तू लताड़ ऐसा चहार जानिब पड़े हैं पुर्ज़े निगाह-ओ-दिल के हमारा इस इश्क़ ने किया है कबाड़ ऐसा मैं भूल बैठा हूँ हँसना 'फ़रताश' भूल बैठा हुआ है ख़ुशियों का बंद मुझ पर किवाड़ ऐसा